राजेश पटेल, डूंगरपुर। जब आराध्य भगवान श्रीकृष्ण का नाम आता है तो गोकुल व मथुरा जेहन में आ जाता है। मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण के साथ राधा की प्रतिमा विराजित होती है, लेकिन वागड़ में एक गांव ऐसा है जिसके नाम में ही भगवान श्याम बिराजते हैं। डूंगरपुर जिले के बिछीवाड़ा पंचायत समिति में स्थित नवलश्याम गांव वर्तमान में राधाकृष्ण मंदिर से पहचाना जाता है। गांव के राधाकृष्ण मंदिर काशी के कारीगरों की मदद से तैयार किया है। इस मंदिर को गोकुल, मथुरा की तरह हुबहु बनाने का प्रयास किया गया है। इस मंदिर में भगवान कृष्ण की प्रतिमा काले रंग की है। वहीं राधा की प्रतिमा गोरी है। यहां पर यमुना नदी के किनारे का स्वरूप देने के लिए पास में तालाब का निर्माण किया गया है।
गांव के बुजुर्ग मोहनदास वैष्णव ने बताया कि प्राचीन काल मे यह नवलगढ़ नगरी थी। पहले यह नगरी चामुंडा माता मंदिर के पास बसी हुई थी और राजा कच्चे आवास में रहता था। अभयसिंह ने पहले मंदिर बनवाया इसके बाद अपना महल बनाया। राजा ने मथुरा मंदिर में स्थित प्रतिमाओं जैसी प्रतिमा अपनी नगरी में बनवानी चाही। मूर्तियां बनवाकर मंदिर का निर्माण कराया। इसके बाद महल को बनाया गया। इससे पहले राजा चामुंडा मंदिर के पास रहा करते थे। उसके पास स्थित पहाड़ी पर राजा की सेना रहती थी। जिसके अवशेष आज भी लोगों को मिलते हैं। इसी मंदिर के कारण नवलगढ़ का नाम बाद में नवलश्याम कहलाया। बताते हैं कि शिवलिंग की स्थापना भी राजा अभयसिंह ने की थी। राजा अत्यधिक धार्मिक प्रवृति के थे।

आस्था के इस परम धाम में शिवलिंग स्थापित किया हुआ है। वही भगवान विष्णु का वाहन गरुड़जी की मूर्ति विराजित है। इस ऐतिहासिक मंदिर की कलाकृतियों, मीनाकारी बेजोड़ है। यहां राजा अभयसिंह की फोटो भी कारीगरों ने कांच के टुकड़ों से बनाई है। वहीं सजावट में हरे वनों को दर्शाया है। इससे यह लगता है कभी यह क्षेत्र पेड़ व वनों से आबाद था। साथ ही उनके नामो को भी लिखा गया है। मंदिर के इतिहास और स्थापना सम्बन्धी दो शिलालेख भी लगे हुए है।
इस राधाकृष्ण मंदिर में दोनों प्रतिमाओं के पास तांबे के पाइप लगे हुए है। जिससे होली के वक्त मंदिर के ऊपर बनी टंकी में रंगों को भरकर फव्वारे की तरह उड़ाया जाता था। पाइप आज भी यहां मौजूद है। यहाँ जन्माष्ठमी के दिन मेला भरता है। दूसरे दिन नवलश्याम और ओडा छोटा गांव मे प्रसाद बांटा जाता है। यहां रोजाना श्रद्धालुओं की आवाजाही रहती है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि अब तो गोकुल व मथुरा जाना आसान हो गया है, लेकिन उस समय उन लोगों के लिए यहीं मथुरा था। स्थानीय लोगों की तरफ से मनोकामना धारण की जाती है।

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